कि नींद उड़ाकर ओ चैन से सोती रही। मैं आधी रात जागकर पन्नो पे आसूं बिखरते रहा। उसकी बातों को मैं सोचकर, लास्ट मैसेज मैं करता रहा। चादर ओढ़े मैं रात भर तकिए को भिंगोता रहा। न बोला मैंने कुछ आज तक। बस जज्बात को छुपाता रहा इशारे दिए मैंने कई बार मगर ओ हर बार टालता रहा
कुछ पाने में बहुत कुछ छूट जाता है। अगर साथ दूं नदी का तो समुंदर रूठ जाता है। मुहब्बत पढ़ने और लिखने में आसान है साहब। निभाने में पसीना छूट जाता है
परिंदो की फितरत से आए थे ओ मेरे दिल में। जरा सा पंख निकल आये; तो आशियाना ही छोड़ दिया
मरहम नही दे सकता तो जख्म ही दे दो जालिम। महसूस तो हो की अभी तक भूले नहीं हो
बहा जो लहू ओ वापस v आयेगा। पर बीता जो लम्हा ओ वापस नही आयेगा
बदनाम तो बहुत हुं इस जमाने मे। तु ये बता की तेरे सुनने में कौन सा किस्सा आया है
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